श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 123
 
 
श्लोक  1.10.123 
কেবল নীলাচলে প্রভুর যে যে ভক্ত-গণ
সঙ্ক্ষেপে করিযে কিছু সে সব কথন
केवल नीलाचले प्रभुर ये ये भक्त - गण ।
सङ्क्षेपे करिये किछु से सब कथन ॥123॥
 
अनुवाद
मैं श्री चैतन्य महाप्रभु के जगन्नाथ पुरी के कुछ भक्तों के बारे में थोड़ा सा वर्णन करूँगा।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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