श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 116
 
 
श्लोक  1.10.116 
রামদাস অভিরাম — সখ্য-প্রেমরাশি
ষোলসাঙ্গের কাষ্ঠ তুলি’ যে করিল বাঙ্শী
रामदास अभिराम - सख्य - प्रेमराशि ।
षोलसाङ्गेर काष्ठ तुलि’ ये करिल वाँशी ॥116॥
 
अनुवाद
रामदास अभिराम सदैव सख्य भाव में लीन रहे। उन्होंने सोलह गाँठों वाले बाँस को बाँसुरी बना डाला।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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