श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 114
 
 
श्लोक  1.10.114 
জগন্নাথ তীর্থ, বিপ্র শ্রী-জানকীনাথ
গোপাল আচার্য, আর বিপ্র বাণীনাথ
जगन्नाथ तीर्थ, विप्र श्री - जानकीनाथ ।
गोपाल आचार्य, आर विप्र वाणीनाथ ॥114॥
 
अनुवाद
मूल वृक्ष की सत्तरहवीं शाखा जगन्नाथ तीर्थ थे, सत्तरनवीं शाखा श्री जानकीनाथ ब्राह्मण, अस्सीवीं शाखा गोपाल आचार्य और इक्यानवेवीं शाखा वाणीनाथ ब्राह्मण थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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