श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 10: चैतन्य-वृक्ष के स्कन्ध, शाखाएँ तथा उपशाखाएँ  »  श्लोक 102
 
 
श्लोक  1.10.102 
সার্ধ সপ্ত-প্রহর করে ভক্তির সাধনে
চারি দণ্ড নিদ্রা, সেহ নহে কোন-দিনে
सार्ध सप्त - प्रहर करे भक्तिर साधने ।
चारि दण्ड निद्रा, सेह नहे कोन - दिने ॥102॥
 
अनुवाद
वे दिन के साढ़े बाइस घंटे से भी अधिक समय तक भक्ति में लीन रहते थे और दो घंटे से भी कम समय सोते थे। कभी-कभी तो इतना समय भी उन्हें नहीं मिल पाता था।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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